देश में सबसे पहला आधार कार्ड पाने वाली रंजना पूरी तरह से कैशलेस हो गई है। रंजना कहती हैं कि वह दिहाडी मजदूरी कर जीवन यापन करती हैं। गांव के मेले में खिलौने बेचने वाली रंजना कहती हैं कि सरकारें गरीबों का राजनीति के लिए खूब इस्तेमाल करती हैं। रंजना का कहना है कि 2010 में नेताओं ने गांव के कई लोगों के साथ फोटो खिंचवाई और आधार कार्ड हाथ में थमाकर चले गए। उसके बाद किसी ने हमारी सुध नहीं ली।
बिजली का मीटर तक निकाल लिया गया और आधार कार्ड से लिंक किया गया। बैंक खाता खाली पड़ा है, अब तक उसमें सब्सिडी का एक पैसा नहीं आया है। पहले की सरकार ने हमें ये बिना काम का आधार कार्ड थमाया। रंजना का गांव तेंभली पुणे से करीब 47 किलोमीटर की दूरी पर दूरदराज इलाके में है। उन्हें देश का पहला आधार कार्ड मिलने के बाद गांव सुर्खियों में आ गया था। रंजना से मोदी सरकार की नोटबंदी के फैसले पर प्रतिक्रिया मांगने पर वह थकान भरी मुस्कान के साथ कहती हैं, ‘हम तो पहले ही कैशलेस हैं।’
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