हमारी मस्ती हमारी किलकारी हमारे हुड़दंग पर किसी की नजर लग गई । किसी ने हमारी किलकारी, हमारे हुड़दंग पर, हमारी हरी भरी बगिया में आग लगा दी । मुझे लगता है हमारा अंतर्मन राग आकर्षण और प्रेम से रूठ गया है । हम मरुभूमि बन गए हैं यही कारण है कि जहां जूही चमेली की बगिया हुआ करती थी वहां आज कटीले व्रक्ष आ गए हैं यही कारण है कि हम इतना तनावग्रस्त चिंताग्रस्त बनते जा रहे हैं। हमारे सारे अरमान सूख गए प्रेम की धरा रेत में विलीन हो गई । आज आवश्यकता है कि पहले हमारे जीवन में राग आकर्षण और प्रेम पैदा किया जाए ताकि आज हम जो नफरत की आग में जले जा रहे हैं। घृणा और आवेश के कारण हमारा जीवन विष वृक्ष बन गया है पहले हमें उसी अंतर्मन की सफाई करनी चाहिए और तब उसमें स्वस्थ पौधा लगाना चाहिए तभी उसमें सुंदर खेल फूल खिलेंगे । ऐसा इसलिए क्योंकि जितनी भी हमारी विकास यात्रा चल रही है वह सभी मनुष्य के लिए हैं । मनुष्य को कैसे सुखी बनाया जाए हमारी विकास यात्रा का यही उद्देश्य है । लेकिन डर है कि बड़े बड़े मॉल कॉलोनियों और बड़ी-बड़ी सड़कों के नीचे कहीं मानवता दब ना जाए । कहीं इस प्रगति के दौर में मनुष्य किसी खंडर में छिप न जाए । प्रगति केवल साधनों तक सीमित ना रह जाए । क्योंकि समस्त साधन हमें सुखी बनाने के लिए उपलब्ध किए जा रहे हैं । भय है कि इन साधनों के नीचे मनुष्य दब न जाए।
आजकल बड़े बड़े शहरों में देखा जा रहा है कि 50 लाख की गाड़ी पर एक बीमार चिंता ग्रस्त व्यक्ति बैठा है कालोनियों में बड़े बड़े मकान है जो संपूर्ण आधुनिक सुविधाओं से लैस है लेकिन उन मकानों में जो लोग रह रहे हैं यह बड़े अशांत हैं वहां खड़ा मानव तनाव और चिंता ग्रस्त है ऐसा इसलिए क्योंकि मकान तो बन गए, ऐसी भी लग गए आरामदायक वस्तुएं उपलब्ध हो गई लेकिन उसमें रहने वाला मनुष आज भी चिंता ग्रस्त है । इसलिए प्रगति तो है लेकिन पहले प्रगति की यात्रा मनुष्य के अंतकरण से शुरू हो क्योंकि सारी विकास यात्राएं जब मनुष्य के लिए ही हो रही है तो पहले मनुष्य को एक स्वस्थ मानव बनाने की आवश्यकता है ताकि वह प्रगति के रस को पी सके।
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