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Wednesday, 28 December 2016

सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सदैव तत्पर रहें - LIVE MEERUT NEWS


सत्य को अनुभूत किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए हमारा हृदय मंदिर पवित्र हो। हर कर्म पूजा बना लें, परमात्मा को साक्ष्य बनाकर कर्म करें। 


धर्मग्रंथों का उद्घोष है कि सत्य से बड़ा कोई दूसरा धर्म नहीं है। महापुरुषों का भी यही कथन है कि सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सदैव तत्पर रहें। ऐसा करते ही अज्ञान, ज्ञान में बदल जाएगा। अंधकार प्रकाश में परावर्तित हो जाएगा। जीवन की यात्र अद्भुत होगी। नित्य प्रति उल्लास-उमंग-उत्साह का समावेश होगा। सच तो यह है कि सत्य की अनुभूति के बाद ही आप शांति के साथ जीवन बसर कर सकते हैं।
सत्य व्यक्ति को निर्भार बना देता है। उसकी यात्र स्वभावत: महाशून्य की तरफ होने लगती है। कविगुरु रविंद्रनाथ टैगोर ने कहा था कि जो व्यक्ति सत्य निष्ठ होता है, अपने कर्तव्य के प्रति सचेतन व सजग होता है, उसके मार्ग का बाधक बनना इतना सरल कार्य नहीं होता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि सत्य के साथ तो स्वयं सच्चिदानंद परमात्मा होता है। देखा जाए तो वास्तविकता भी यही है।

यदि हमें अपने कर्तव्यों का सही मायने में बोध है तो वह परमात्मा सदैव किसी न किसी रूप में हमारी सहायता अवश्य ही करता है। जो जीवन को पवित्रता और पारदर्शिता के साथ जीते हैं, जो निर्मल मन वाले हैं। उन्हें परमपिता परमेश्वर सहज ही स्वीकार करते हैं। शांति भी उस एक की चरण-शरण में ही है। सत्य को पा लेना या जान लेना इतना आसान कार्य भी नहीं है। पूजा-पाठ की अनेक पद्धतियां अपनाकर भी यदि हमारे जीवन में, हमारे आचरण में वह सत्य नहीं उतरा, तो सब निर्थक है। कथन और आचरण, दोनों का जब तक समन्वय नहीं होगा, सत्य का दर्शन दुर्लभ है। यह देश धर्मराज युधिष्ठिर का है, सत्यवादी राजा हरिशचंद्र का है। जिन्होंने सत्य की पालना के लिए अपना सब कुछ न्योछावर किया। तभी वे आज भी अमर हैं। जो लोग सत्यनिष्ठ होते हैं, उनमें देवत्व होता है। वे परमात्मा के प्यारे होते हैं।

हालांकि इस राह में कई कठिनाइयां भी आती हैं। लेकिन जो दृढ़ संकल्पित होते हैं, जो अपने मन की आवाज को पहले सुनते हैं, वे सत्य-असत्य का भेद भली-भांति कर पाते हैं। अपनी सत्यवादिता का परिचय व्यक्ति अपने कर्मक्षेत्र में प्रस्तुत कर सकता है। सत्य को अनुभूत किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए हमारा हृदय मंदिर पवित्र हो। हर कर्म पूजा बना लें, परमात्मा को साक्ष्य बनाकर कर्म करें। यह मानकर कि वह हमारे हर अच्छे-बुरे कर्मो का लेखा-जोखा रखे हुए है। सत्य मात्र परमात्मा है, बाकी सारा संसार नश्वर है।












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