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Wednesday, 6 July 2016

ईद के मौके पर रिलीज़ हुई सुल्तान का रिव्यु और दर्शको की कही बाते

पेश है लाइव मेरठ की यह रिपोर्ट 
 अली अब्बास जफर ने हरियाणा के बैकड्राप में रेवाड़ी जिले के बुरोली गांव के सुल्तान और आरफा की प्रेमकहानी में कुश्ती का खेल जोड़ कर नए तरीके से एक रोचक कथा बुनी है। इस कथा में गांव, समाज और देश के दूसरी जरूरी बातें भी आ जाती हैं, जिनमें लड़कियों की जिंदगी और प्रगति का मसला सबसे अहम है। लेखक और निर्देशक अली अब्बास जफर उन पर टिप्पणियां भी करते चलते हैं। उन्होंने शुरू से आखिर तक फिल्म को हरियाणवी माटी से जोड़े रखा है।अली अब्बाय जफर ने 'सुल्तान' में किरदारों और दृश्यों में देसी भाव और व्यवहार को ढंग से पेश किया है। किरदारों के आपसी संबंध और बातों में आई आत्मीयता फिल्म का प्रभाव बढ़ा देती है। इरशाद कामिल और विशाल-शेखर के गीत-संगीत में फिल्म की थीम, किरदारों के इमोशन और पॉपुलर जरूरतों पर समान रूप से ध्यान दिया गया है।

 फिल्म की कहानी तो रेसलर की जिंदगी पर आधारित है लेकिन फिल्मांकन के दौरान काफी लंबी लगने लगती है, सिलसिलेवार कई सारी घटनाएं घटती जाती हैं, जो वर्तमान और फ्लैशबैक के साथ गुजरती हैं. इंटरवल के बाद थोड़ी बोरियत भी होने लगती है, यही कारण है की फिल्म को एडिटिंग के साथ और भी क्रिस्प किया जा सकता था. हालांकि लोकेशंस और सिनेमेटोग्राफी काबिल ए तारीफ हैं. सलमान की मौजूदगी फिल्म को और भी दर्शनीय बनाती है. फाइट सीक्वेंस कमाल के हैं साथ ही सिनेमेटोग्राफी जबरदस्त है. सलमान की मौजूदगी, रोमांचक फाइट सीक्वेंस और सुल्तान की कहानी के लिए जरूर देखी जा सकती है. फिल्म की कमजोर कड़ी इसकी लंबाई है. फिल्म को अच्छे तरीके से एडिट करके छोटा और क्रिस्प किया जा सकता था. वैसे तो फिल्म की कमाई बहुत होगी क्योंकि 5 दिनों का वीकेंड मिला है लेकिन उस हिसाब से फिल्म को और भी ज्यादा कट टू कट बनाया जा सकता था.

 फिल्म की कहानी एवरेज है... 'सुल्तान' देखने के बाद आपको ऐसा नहीं लगेगा कि आपने कोई बेहतरीन कहानी देखी है... सलमान के हीरोइज़्म को ध्यान में रखकर बुने जाने के कारण स्क्रीनप्ले लंबा लगता है... फिल्म में सलमान का क़िरदार जमाने में ज़्यादा वक्त निकल जाता है, जिसकी वजह से फिल्म का पहला भाग ज़रा ढीला लगता है, लेकिन जो सलमान खान के फ़ैन हैं, उन्हें शायद ऐसा न लगे 'सुल्तान' जहां देश की मिट्टी के खेल पहलवानी की बात करती है, वहीं 'बेटी बचाओ' मुहिम से जुड़ा मज़बूत संदेश भी देती है... कुल मिलाकर 'सुल्तान' फ़ैन्स के लिए सलमान की ओर से ईदी साबित हुई... वैसे 'सुल्तान' कोई महान सिनेमा नहीं, लेकिन सलमान के फ़ैन्स के लिए मेरी ओर से फिल्म की रेटिंग है -3

 कहानी में नयापन भले ही ना हो, लेकिन आदित्य चोपड़ा का स्क्रीनप्ले बेहद कसा हुआ है और अली अब्बास ज़फ़र का निर्देशन बढ़िया है. फिल्म में लव स्टोरी को आधार बना कर सारे फाइट सीन को एक वजह दे दी गई है. इसी वजह से कुश्ती या फाइट सीन की भरमार होते हुए भी वो कहीं बोर नहीं करते. कसा हुआ स्क्रीनप्ले और एडिटिंग फिल्म की रफ़्तार धीमी नहीं पड़ने देते.'सुल्तान' ढाई घंटे का ज़बरदस्त मनोरंजन और सलमान ख़ान के स्टारडम की नुमाइश है. वो हरियाणवी बोलते हैं, कॉमेडी करते हैं, गंभीर सीन में भी छाप छोड़ते हैं और फाइट करते हुए कमाल के लगते हैं. फिल्म के हर सीन में सलमान हैं और वो पूरे फॉर्म में हैं.
 कहानी में नयापन भले ही ना हो, लेकिन आदित्य चोपड़ा का स्क्रीनप्ले बेहद कसा हुआ है और अली अब्बास ज़फ़र का निर्देशन बढ़िया है. फिल्म में लव स्टोरी को आधार बना कर सारे फाइट सीन को एक वजह दे दी गई है. इसी वजह से कुश्ती या फाइट सीन की भरमार होते हुए भी वो कहीं बोर नहीं करते. कसा हुआ स्क्रीनप्ले और एडिटिंग फिल्म की रफ़्तार धीमी नहीं पड़ने देते.'सुल्तान' ढाई घंटे का ज़बरदस्त मनोरंजन और सलमान ख़ान के स्टारडम की नुमाइश है. वो हरियाणवी बोलते हैं, कॉमेडी करते हैं, गंभीर सीन में भी छाप छोड़ते हैं और फाइट करते हुए कमाल के लगते हैं. फिल्म के हर सीन में सलमान हैं और वो पूरे फॉर्म में हैं.

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