छावनी क्षेत्र अवैध निर्माण का गढ़ बन गया है। जिस तरह से छावनी में नियमों के विपरीत निर्माण हुए ह्रैं, और कैंट बोर्ड ने उन्हें सूचीबद्ध किया है। उससे साफ लगता है कि छावनी क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा अवैध हो चुका है। लेकिन इस अवैध निर्माण के पीछे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से कैंट बोर्ड ही जिम्मेदार है। जिसने साठगांठ के तहत नियम और कानून के लचीलेपन का फायदा उठाकर जमकर अवैध निर्माण कराये। कैंट बोर्ड ने जो आरटीआई में जानकारी दी है, उसके अनुसार छावनी में 1607 अवैध निर्माण हैं।
ऐसे हुए अवैध निर्माण
छावनी क्षेत्र में अधिकांश जमीन लीज पर दी हुई है। जिसमें निर्माण के साथ ही उसकी खरीद फरोख्त प्रतिबंधित होती है। बावजूद इसके पिछले ढाई दशक में कैंट की तमाम जमीनें और संपत्ति बिकती रही और निर्माण होते रहे। कैंट बोर्ड इन्हें नोटिस जारी करता रहा और मामले कोर्ट जाते रहे। जहां से अधिकांश को स्टे मिल गया। इसके बाद कैंट बोर्ड की लचर पैरवी से मामले आज तक लटके हुए हैं।
यह है कैंट बोर्ड का खेल
जमीन या संपत्ति पर काबिज व्यक्ति जब निर्माण शुरू करता है तो उसके कुछ दिन बाद ही कैंट बोर्ड की तरफ से नोटिस जारी होता है। जिसके जवाब के बाद कैंट बोर्ड दूसरा नोटिस जारी करता है। और इसमें कार्रवाई की चेतावनी होती है। इसके विरोध में नोटिस प्राप्तकर्ता कोर्ट जाता है और वहां से स्टे ले आता है। छावनी क्षेत्र के सूत्रों के अनुसार कैंट बोर्ड के दलाल अधिकारियों से साज कर नोटिस दिलाते हैं और फिर इसका जवाब और उसके अगले नोटिस की कार्रवाई साठगांठ से होती है। लेनदेन की इस सेटिंग में कैंट बोर्ड की लचर पैरवी भी शामिल होती है। स्टे के बावजूद निर्माणकर्ता को कैंट बोर्ड आगे का निर्माण पूरा करने की भी छूट दे देता है। यही कारण रहा कि छावनी क्षेत्र में लगातार भू-उपयोग परिवर्तन के साथ अवैध निर्माण होते गये और छावनी बोर्ड की फाइल मोटी होती गयी।
यूं ही नहीं उठ रही अफसरों पर अंगुली
छावनी परिषद के अफसरों पर अंगुली यूं हीं नहीं उठ रही है। इसके पीछे तमाम तथ्य हैं। कैंट क्षेत्र में अवैध निर्माण के मामलों में निर्माण से जुड़े बोर्ड के अफसरों के नाम उछलते रहे हैं। सेटिंग के चलते सारे काम होते रहे और छावनी का अतिसंवेदनशील इलाका अवैध निर्माण की चपेट में आता गया।
मामला पहुंच रहा सुप्रीम कोर्ट
कैंट बोर्ड के अवैध निर्माण और शनिवार को हुई ध्वस्तीकरण कार्रवाई में चार लोगों की मौत का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचने जा रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने आरटीआई में छावनी परिषद से अवैध निर्माण की सूची मांगी थी। जिस पर उन्हें बताया गया कि 1607 अवैध निर्माण है। लोकेश खुराना का कहना है कि छावनी परिषद की जमीन हाई सिक्योरिटी जोन में आती है। ऐसे में इस पर इतने अवैध निर्माण होना सवाल खड़े करता है। लोकेश सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर रहे हैं। जिसमें कोर्ट ऑफ इंक्वायरी की मांग के साथ जिन अधिकारियों के कार्यकाल में निर्माण हुआ, उन्हें भी जांच में शामिल करने की मांग उठायी गयी है। साथ ही कोर्ट से अनुरोध किया जा रहा है कि आवासीय निर्माण को छोड़कर यदि जरूरत है तो व्यावसायिक निर्माण ही तोड़े जाएं। उसमें भी मशीनोें का नहीं बल्कि मानव श्रम का उपयोग किया जाए।
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