हस्तिनापुर को द्रोपदी का शाप कहें या इसका दुर्भाग्य, जो भी योजना सरकार यहां धरातल पर उतारती है, उसमें वन विभाग का रोड़ा अटक जाता है। वन आरक्षित क्षेत्र के विकास में वन विभाग बाधा बन जाता है। ताजा उदाहरण आठ साल पहले बसपा सरकार के अथक प्रयासों से करोड़ों रुपये की लागत से गंगा पर पुल का निमार्ण कार्य शुरू किया गया, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों के हस्तक्षेप के कारण एक बार फिर यह कार्य अधर में लटक गया। इस कारण खादरवासियों को बाढ़ से मुक्ति मिलने का सपना भी टूट गया।
खादरवासियों की मांग पर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने बिजनौर बैराज और गढ़मुक्तेश्वर के बीच पुल बनवाने के लिए लगभग 34 करोड़ रुपये मंजूर किए थे। 22 नवंबर, 2008 को इसकी आधारशिला रख निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया गया। बता दें कि कहर बरपाने वाली गंगा नदी की धार में प्रतिवर्ष हजारों हेक्टेयर तैयार खड़ी फसल बह जाती है। करोड़ों रुपये का बजट बाढ़ में बचाव कार्य के प्रयासों पर खर्च होता है, लेकिन बाढ़ से तबाही का मंजर प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। देखा जाए तो गंगा नदी का रुख हर वर्ष कई गावों की ओर बढ़ रहा है और अब तक दर्जनों गांव गंगा की गोद में समा चुके हैं, लेकिन आज तक शासन-प्रशासन ने बाढ़ के कटाव असे बचाव के पुख्ता प्रबंध नहीं किए।
लगभग पांच साल पहले बसपा सरकार ने खादर क्षेत्र के लोगों के मन में उम्मीद की किरण जगाई और बिजनौर-चांदपुर को मेरठ से जोडऩे के लिए गंगा पुल की आधरशिला रखी। राज्य सेतु निगम को तीन सालों में गंगा पुल निर्माण पूरा करने की जिम्मेदारी दी गई। करोड़ों रुपये की लागत से गंगा नदी को जोडऩे वाले पुल का लगभग 85 फीसदी हिस्सा अब तक बनकर तैयार हो गया, लेकिन छरू पुल को जोडऩे वाले मार्ग को दुरुस्त करने का कार्य शुरू किया तो वन विभाग के अधिकारियों को वन आरक्षित क्षेत्र में रहने वाले जंगली जीवों की याद आई और पुल का निमार्ण कार्य एक बार फिर रुकवा दिया गया।
गंगा नदी का पुल बन जाने से मनोहरपुर, खेड़ी समेत कई गांवों के किसानों को अपनी खेती करने व आने-जाने के लिए आसानी हो जाती। इस जोखिम भरी परेशानी से भी बचाव हो जाता। परंतु बंद पड़े काम ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। बिजनौर जनपद के भी 50 गांवों के अलावा मवाना व चांदपुर आदि भी मेरठ से जुड़ जाते। सेतु निगम के अवर अभियंता आरके अग्रवाल ने बताया कि बजट के अभाव में निर्माण कार्य रुक-रुक चल रहा है। पीडब्ल्यूडी व वन विभाग के अधिकारियों की आपत्तियों के चलते विवाद का निस्तारण नहीं हो सका है। उधर, क्षेत्रीय विधायक प्रभुदयाल वाल्मीकि ने भी पुल निर्माण के लिए बजट शीघ्रतापूर्वक जारी कराए जाने का आश्वासन दिया। वहीं मानक के अनुसार यह पुल वर्ष 2010 तक पूरा होकर यातायात प्रारंभ किया जाना था। पुल निर्माण कार्य प्रारंभ होते ही क्षेत्रवासियों में हर्ष की लहर दौड़ पड़ी थी। पिछले चार दशकों से खादर क्षेत्र के गांव बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं। पुल बनने से बाढ़ के कहर से छुटकारा मिल सकता था।
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